Share Market Kya hai ?
शेयर मार्केट क्या है, क्यों है, किस तरह से काम करता है, क्या फायदे क्या नुकसान है और आप इसमें किस तरह से पैसे इन्वेस्ट कर सकते हैं।
शेयर मार्केट की शुरुआत आज से करीब 400 साल पहले हुई थी। दोस्तों सिक्सटी हंड्रेड के टाइम पर एक (डच ईस्ट इंडिया कंपनी) थी। जैसे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी थी वैसे ही एक (डच ईस्ट इंडिया कंपनी) भी थी जो कंट्री आज के टाइम पर नीदरलैंड्स है। उस जमाने में दोस्तों लोग शिप के द्वारा बहुत एक्सप्लोरिंग किया करते थे। पूरी दुनिया का नक्शा डिस्कवर नहीं हुआ था तो एक कंपनी शिप भेजती थी अपनी दूसरी दुनिया की खोज करने के लिए। ट्रेड करने के लिए दूर दूर तक हजारों किलोमीटर का सफर होता था जहाजों में बैठकर। इसके लिए बहुत सारे पैसे की जरूरत होती थी। यह पैसा किसी भी एक इंसान के पास इतना नहीं था।
उस टाइम पर तो उन्होंने ओपनली ऑफर किया आम लोगों को कि आओ हमारे जहाजों में पैसा लगाओ, हमारी शिप में पैसा लगाओ कि जब यह शिप इतना लंबा सफर तय करके किसी और देश जाएंगी, वहां से जो भी खजाना लेकर आएंगे, जो भी पैसे कमा कर आएंगी तो उनमें कुछ शहर आपको मिल जाएगा उन पैसों का। लेकिन यह काम बहुत रिस्की होता था दोस्तों, क्योंकि उस टाइम पर आधे से ज्यादा जहाज तो वापस लौट कर ही नहीं आते थे, गुम हो जाते थे, टूट जाते थे या लूट लिए जाते थे। कुछ भी होता था उनके साथ तो इन्वेस्टर्स ने देखा यह काम बहुत रिस्की था।
यहां पर उन्होंने डिसाइड किया कि एक जहाज में पैसे लगाने से अच्छा पांच जहाजों में पैसा लगाओ कि चांसेस तो यह हो कि कुछ एक ना एक तो उनमें से वापस आए और एक जहाज। दोस्तों, मल्टीपल इन्वेस्टर्स के पास जाकर यह पैसे लेता था तो यह कहीं ना कहीं एक तरह से शेयर मार्केट क्रिएट हो गया। ओपनली बिडिंग होती थी वहां पर जहाजों की। वहां के डॉक पर डॉक वो जगह होती है जहां से शिप निकलती हैं। देखते ही देखते दोस्तों सिस्टम बहुत सक्सेसफुल हो गया क्योंकि कंपनी को जो पैसों की कमी होती थी वो हम लोग पूरी कर देते थे और आम लोगों को यहां पर और ज्यादा पैसे कमाने का मौका मिल जाता था। आपने हिस्ट्री की किताबों में पढ़ा ही होगा कि ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कंपनी कितनी अमीर बन गई थी उस टाइम पर और आज के दिन दोस्तों ऑलमोस्ट हर कंट्री में अपना एक स्टॉक एक्सचेंज है और हर कंट्री स्टॉक मार्केट पर बहुत डिपेंडेंट हो गई है

Share Market Kya hai ?
Share Market Kya hai ?, शेयर मार्केट या इक्विटी मार्केट इन तीनों का एक ही मतलब है। दोस्तों यह वह मार्केट होता है जहां पर आप किसी कंपनी के शेयर्स खरीद सकते हो या बेच सकते हो। शेयर्स खरीदने का मतलब है कि आप किसी कंपनी में कुछ परसेंट ओनरशिप खरीद रहे हो यानी कुछ परसेंट आप उस कंपनी के मालिक बन रहे हो। यानी उस कंपनी को अगर प्रॉफिट होगा तो कुछ परसेंट उस प्रॉफिट का आपको भी मिलेगा। उस कंपनी को अगर लॉस होगा तो कुछ परसेंट उस लॉस का आपको भी सहना पड़ेगा।

Example 1
एक छोटा सा उदाहरण जिससे आप आसानी से इसे समझ सकें ,मान लो आपको एक नया स्टार्टअप खोलना है। आपके पास 10 हज़ार रुपए है लेकिन वो काफी नहीं है तो आप अपने दोस्त के पास जाते हो और कहते हो कि तू भी 10 हज़ार रुपए लगा और हम फिफ्टी फिफ्टी पार्टनरशिप करेंगे यहां पर तो आपकी कंपनी का जो फ्यूचर में प्रॉफिट होगा फिफ्टी परसेंट आपको मिलेगा। फिफ्टी परसेंट आपके दोस्त को मिलेगा। इस केस में फिफ्टी परसेंट शेयर्स आपने अपने दोस्त को दे दिए इस कंपनी में। यही चीज बड़े स्केल पर स्टॉक मार्केट में होती है। बस फर्क यह है कि वहां पर आप अपने दोस्त के पास जाने की जगह पूरी दुनिया के पास जाते और कहते हो की आओ मेरी कंपनी में शेयर खरीदो
किसी भी कंपनी के हर शेयर की वैल्यू इक्वल होती है। अब ये कंपनी के ऊपर है कि वो अपने कितने शेयर बनाए। अगर किसी कंपनी की वैल्यू ₹100000 है तो वह ₹1 के 1 लाख शेयर भेज सकती है या फिर ₹0.50 के 2 लाख शेयर भी बना सकती है।
और वैसे दोस्तों जब कंपनी अपने शेयर मार्केट में शेयर बेचती है वो कभी भी 100% नहीं बेचती है। जो एक ओनर होता है वो हमेशा मेजॉरिटी ऑफ शेयर्स तो रखता ही है ताकि उसकी डिसीजन मेकिंग पावर रहे। अगर आप सारे ही शेयर्स बेच डालोगे तो जितने लोगों ने शेयर्स खरीदे हैं, सब ओनर्स बन गए उस कंपनी के सब मालिक बन गए। उस कंपनी के तो सब डिसीजंस भी ले सकते हैं उस कंपनी के लिए। जिस जिस इंसान के पास फिफ्टी परसेंट से ज्यादा ओनरशिप रहेगी, वही डिसीजन ले पाएगा एक कंपनी के लिए तो इसलिए जो फाउंडर्स होते हैं, कंपनी को प्रेफर करते हैं कि फिफ्टी परसेंट से ज्यादा शेयर तो अपने पास ही रखें।
जैसे – फेसबुक का करीब 60 परसेंट शेयर मार्क जकरबर्ग के पास ही है। अब जिन लोगों ने कंपनी से शेयर खरीद लिए हैं, अब यह शेयर यह जाकर और लोगों को बेच सकते हैं। इसे कहते हैं सेकेंडरी मार्केट। दोस्तों जहां पर लोग अपने आप में शेयर्स को बेचते खरीदते हैं, शेयर्स की ट्रेडिंग करते हैं। प्राइमरी मार्केट में कंपनी ने एक प्राइस सेट कर दिया था अपने शेयर का। अब सेकेंडरी मार्केट में कंपनी कुछ नहीं कर सकती। अपने शेयर प्राइस का अब यह शेयर प्राइस ऊपर नीचे होते रहेगा। यह देखकर कि डिमांड कितनी है लोगों की किसी शेयर को खरीदने में सप्लाई कितनी है। उसकी तो डिमांड और सप्लाई को देखकर सेकेंडरी मार्केट में शेयर प्राइस अब ऊपर नीचे होते रहेगा।
Bombay Stock Exchange
हर बड़ी कंट्री में अपनी एक स्टॉक एक्सचेंज होती है। इंडिया में दो सबसे पॉप्युलर स्टॉक एक्सचेंज हैं। एक है बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, जिसमें करीब करीब फाइव थाउजेंड फोर हंड्रेड कंपनीज रजिस्टर्ड है और एक है नेशनल स्टॉक एक्सचेंज हमारा, जिसमें वन थाउजेंड सेवेन हंड्रेड कंपनीज रजिस्टर्ड है। अब इतनी सारी कंपनीज एक स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर्ड है। अगर हमें ओवरऑल देखना है की एक स्टॉक एक्सचेंज में सारी कंपनियों के शेयर प्राइस ऊपर जा रहे हैं या नीचे जा रहे हैं, यह कैसे देखा जाए?

इस चीज को मेजर करने के लिए दोस्तों हमारे लिए एक मेजरमेंट बनाई गई है। सेंसेक्स और निफ्टी। सेंसेक्स बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की टॉप 30 कंपनीज का एक एवरेज ट्रेंड दिखाता है कि एवरेज आउट करके उन सारी 30 कंपनियों के शेयर प्राइस ऊपर जा रहे हैं या नीचे जा रहे हैं। सेंसेक्स का फुल फॉर्म। सेंसिटिविटी इंडेक्स भी यही दर्शाता है।
सेंसेक्स का जो नंबर है दोस्तों की आज फोर्टी थाउजेंड के करीब पहुंच चुका है। इस नंबर की खुद में कोई ज्यादा वैल्यू नहीं है। आप इस नंबर को हमेशा पास से कंपेयर करके देखिए। तब आपको इसकी वैल्यू समझ में आएगी क्योंकि यह ये जो नंबर है ये थोड़ा रैंडमली डिसाइड किया गया है कि शुरू में इन्होंने डिसाइड कर लिया कि इस कंपनी का इस वक्त ये शेयर वैल्यू है तो हम इन सारे नंबर्स को कंपाइल करके। हम कहते हैं कि फाइव हंड्रेड है तो धीरे धीरे सेंसेक्स बढ़कर फोर्टी थाउजेंड तक पहुंच गया। पिछले 50 सालों में कुछ तो यह दिखाता है कि पिछले 50 सालों में इन 30 कंपनियों के शेयर प्राइस में कितना फ्लकचुएशन हुआ है या उतार-चढ़ाव आए हैं
Nifty 50 Stocks
निफ्टी इंडेक्स है नेशनल प्लस फिफ्टी। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की टॉप फिफ्टी कंपनी के शेयर प्राइस में क्या ऊपर नीचे का ट्रेंड दिख रहा है, ये निफ्टी दिखाता है यहां पर। अगर एक कंपनी को किसी स्टॉक एक्सचेंज पर जाकर अपने शेयर्स बेचने हैं तो उसे कहेंगे पब्लिक लिस्टिंग कराना। उस कंपनी की अगर कंपनी पहली बार कर रही है तो इसे कहेंगे IPO इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कि पब्लिक को अपने शेयर्स पहली बार ऑफर करा रहे हो।
ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में काम करना बहुत ही आसान था। कोई भी अपनी कंपनी को लाकर पब्लिक के सामने शेयर बेच सकता था, लेकिन आज के टाइम पर दोस्तों यह प्रोसीजर बहुत ही लंबा और कॉम्प्लिकेटेड है और होना भी चाहिए क्योंकि सोचकर देखिए स्कैम करना कितना आसान है। लोगों को कोई भी अपनी फेक कंपनी बनाकर स्टॉक एक्सचेंज में बैठेगा और बढ़ा चढ़ा कर कहेगा कि देखो मेरी कंपनी की इतनी वैल्यू है। मेरी कंपनी ने ये सब किया है। लोगों को झूठ बोलेगा और लोग बेवकूफ बनकर उसकी कंपनी में पैसे इन्वेस्ट कर देंगे और वह पैसे लेकर भाग जाएगा
इंडिया ने दोस्तों हिस्ट्री में ऐसे बहुत से स्कैम देखे हैं। हर्षद मेहता स्कैम, सत्यम स्कैम ये सब यही चीजें थी। लोगों को बेवकूफ बनाकर स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग कराई, अपनी पैसे लिए और भाग गए। वहां से तो धीरे धीरे। दोस्तों जैसे जैसे ये स्कैम्स होते रहे वैसे वैसे स्टॉक एक्सचेंज को पता लगने लगा कि हमें अपने पूरे प्रोसीजर को और स्ट्रांग बनाना पड़ेगा। स्कैम प्रूफ बनाना पड़ेगा। इसके लिए रेगुलेशंस और स्ट्रांग बनाते गए रूल्स और स्ट्रांग बनाते गए। जिसकी वजह से आज काफी कॉम्प्लिकेटेड रूल्स है।
SEBI
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया सेबी एक रेगुलेटरी बॉडी है जो इन सब चीजों को देखती है दोस्तों कि कौन सी कंपनी। को स्टॉक मार्केट पर लिस्ट किया जाए और सही तरीके से किया जा रहा है की नहीं किया जा रहा है। और अगर आपको ये करना है दोस्तों तो आपको सेबी के नॉर्म्स। को पहले फुलफिल करना पड़ेगा। इनके नॉर्म्स बहुत स्ट्रिक्ट है जैसे की आपकी कंपनी के अकाउंटिंग पर। काफी चेक एंड बैलेंस होने चाहिए। कम से कम दो ऑडिटर्स ने आपकी कंपनी के अकाउंटिंग को चेक किया होना चाहिए। तीन साल लग सकते हैं। इस पूरे प्रोसेस में 50 से ज्यादा शेयरहोल्डर्स ऑलरेडी होने चाहिए। आपकी कंपनी में अगर आपको पब्लिकली लिस्ट करना है किसी कंपनी को और जब आप अपने शेयर्स बेचने जाओगे, आपके शेयर्स की अगर कोई डिमांड नहीं हुई लोगों के बीच में, तो सेबी आपकी कंपनी को स्टॉक मार्केट से हटा भी सकता है
अब आप कैसे स्टॉक मार्केट में पैसे इन्वेस्ट कर सकते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के टाइम पर तो आप उसे जमाने में उसे डॉग्स पर जाकर जहां से जहाज निकल रहे थे वहां पर जाकर यह बिल्डिंग कर सकते थे खरीद भेज सकते थे स्टॉक को और इंटरनेट के आने से पहले आपको बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की बिल्डिंग में जाकर काम करना होता लेकिन इंटरनेट के आने के बाद
दोस्तों आपको सिर्फ तीन चीजों की जरूरत है
- एक बैंक अकाउंट
- एक ट्रेडिंग अकाउंट और
- एक डीमैट अकाउंट
डिमैट अकाउंट – बैंक अकाउंट इसलिए आपको अपने पैसों की जरूरत होगी ट्रेडिंग अकाउंट इसलिए कि आप ट्रेड कर सके आप पैसे इन्वेस्ट कर सके किसी कंपनी में और डिमैट अकाउंट होता है दोस्तों स्टॉक जो आप खरीद रहे हैं उसे स्टोर करने के लिए एक डिजिटल फॉर्म में स्टोर करने के लिए उन स्टॉक को आजकल बैंक 3 में 1 अकाउंट प्रोवाइड कर रहे हैं ताकि आप इन तीनों कामों को कर सकें
हम जैसे इन्वेस्टर को कहेंगे रिटेल इन्वेस्टर हमारे जैसे छोटे और साधारण इन्वेस्टर को स्टॉक खरीदने के लिए किसी ब्रोकर की आवश्यकता होती है यह ब्रोकर हमारा बैंक भी हो सकता है या कोई थर्ड पार्टी APP भी
जब आप ब्रोकर के थ्रू पैसे इन्वेस्ट करते हैं तो यह अपना कुछ चार्ज लेते हैं जिसे बोलते हैं ब्रोकरेज चार्ज या ब्रोकरेज RATE
बैंक यह ब्रोकरेज चार्ज 1% तक लेते हैं जबकि बहुत से अप या प्लेटफार्म 0.1% तक लेते हैं
INVESTING V/S TRADING
2 तरीके से लोग स्टॉक मार्केट में काम करते हैं एक इन्वेस्टमेंट करके और एक ट्रेडिंग करके इन्वेस्टमेंट एक बार पैसा डाल देना और जब उन्हें प्रॉफिट दिखे तो अपनी मर्जी के हिसाब से वह निकाल सकते हैं अपने स्टॉक को सील करके
वही ट्रेडिंग एक अलग प्रोफेशन है जिसे लोग सुबह से शाम तक एक जगह से स्टॉक बाय करते हैं दूसरी जगह सेल करते हैं दूसरी जगह से बाय करते हैं तीसरी जगह सेल करते हैं